हिमालयी परंपरा के योगी

02 Jul 2022 16:26:57

हिमालय परंपरा के योगी

इंट्रो- हिमालय का वर्णन नहीं हो सकता है। ठीक उसी तरह यहां रहने वाले योगियों-संतों की चर्चा करना सरल बात नहीं है। हिमालय तीर्थ है। यहां की यात्रा भय और अशांति से व्यक्ति को दूर करती है। वह व्यक्ति को शक्ति से ओत-प्रोत कर देती है। उसी शक्ति की साधना कर कुछेक संत गुरु के आदेश पर नीचे मैदानी भाग में आए। उन्होंने हिमालयी ऋषि और योग परंपरा से दुनिया का परिचय कराया। उन्हीं में स्वामी राम का नाम है। इस परंपरा को आगे बढ़ाया उनके शिष्य स्वामी वेद भारती ने।


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स्वामी राम

हिमालय में निवास करते समय मुझे ऐसा प्रतीत होता है, जैसे में माता की गोद में निवास कर रहा हूं। हिमालय ने अपने प्राकृतिक वातावरण में मेरा पालन-पोषण किया और हिमालय ने ही मुझे जीने की जीवन-शैली दी। यहां रहकर साधक को यह अनुभव होता है कि घास के पत्ते से लेकर ऊंचे-ऊंचे शिखरों तक जीवन में कहीं भी दुख: और अशांति के लिए जरा सा भी स्थान नहीं है। स्वामी राम ने अपने अनुभव से जो पाया, उसे इसी भाव में व्यक्त किया। उनके माता-पिता के मन में भी प्रकृति के प्रति अनुराग अगाध था। हिमालय के जिस भाग में वे लोग रहा करते थे, उसे देवभूमि कहते हैं। इस देवभूमि का अधिकांश क्षेत्र इस समय गढ़वाल में आता है। ब्रद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, जमुनोत्री, नंदा देवी, चौखंबा और नीलकंठ जैसे तीर्थ स्थान और दिव्य पर्वत इसी क्षेत्र में आते हैं। वे दिव्य स्थान ऐसे हैं, जहां पहुंचने के लिए सभी लालायित रहते हैं।

स्वामी राम के जन्म की कथा असाधारण है। उनके आठवीं कक्षा की शिक्षा तक का जिक्र तो मिलता है, लेकिन उससे आगे का जीवन साधारण आदमी के लिए रहस्य से भरा है।

स्वामी राम कहते थे कि आंतरिक सुधार के लिए केवल पवित्र वातावरण ही पर्याप्त नहीं है। हमारे अचेतन मन में छिपे हुए संस्कार बहुत बलवान हैं। बौद्धिक ज्ञान और समय-समय पर संतों से मिलने वाली प्रेरणा तभी काम करती है, जब हम आंतरिक सुधार और आंतरिक परिष्कार के लिए दृढ़ संकल्प के साथ साधना में जुट जाएं। हिमालय की गुफाओं में घोर तपस्या कर उन्होंने परम तत्व को प्राप्त किया था। अपने गुरु बंगाली बाबा के आदेश पर हिमालयी परंपरा, ज्ञान और साधना पद्धति को उन्होंने विश्व के कोने-कोने तक फैलाया। हिमालय के संतों के संग निवास नाम की पुस्तक लिखी। वह पुस्तक आज भी साधकों का मार्ग-दर्शन करती है। 1993 में स्वामी राम आखिरी बार अमेरिका गए। वहां अपना अंतिम प्रवचन दिया। वे बोले, अपने गुरुदेव और अन्य संतों से मिले प्रेम के उपहार के अलावा मेरे पास और कुछ भी नहीं है। वही प्रेम का उपहार मैं आप सबको दे रहा हूं। ईश्वर करे आप इस प्रेम के उपहार को अपने ह्रदय में रख सकें और यह प्रेम का भंडार आप के जीवन में नित्य बढ़ता रहे।

स्वामी राम अध्यात्म विद्या और आधुनिक विज्ञान के बीच सेतु का निर्माण करने वाले संत रहे हैं। उन्होंने अपने गुरु के आदेश पर जापान से होते हुए अमेरिका तक गए। अमेरिका में हिमालय इंस्टीट्यूट की स्थापना की, जिसकी शाखाएं आज विश्व के अनेक देशों में है। स्वामी राम ने प्राचीन योग और अध्यात्म विद्या का आधुनिक विज्ञान से समन्वय कराया।

स्वामी वेद भारती

ऋषिकेश के एक छोर पर स्वामी राम साधक ग्राम स्थित है यह स्वामी वेद भारती का आश्रम है। बेहद शांत वातावरण। दुनिया भर में योग और अध्यात्म का प्रसार करने वाले हिमालय के स्वामी राम के वे शिष्य थे। साधक ग्राम में अधिक भीड़, चहल-पहल नहीं दिखती। यहां सब कुछ बेहद शांत, अनुशासित, व्यवस्थित चलता है। एक गहरी नदी की तरह गंभीर। ठीक वैसा ही जैसा स्वामी वेद भारती का जीवन रहा। स्वामी वेद भारती तब महज नौ साल के थे, जब उन्होंने पतंजलि के योग-सूत्र की शिक्षा देनी शुरू कर दी। 11 वर्ष की आयु में वेदों पर प्रवचन देने लगे। 14 साल के हुए तो दुनिया का भ्रमण करना और प्रवचन देना आरंभ कर दिया। एक भी दिन स्कूल गए बिना स्वामी वेद भारती ने केवल योग, ध्यान और अध्यात्म का गहरा ज्ञान अर्जित किया, बल्कि उनने हॉलैंड में उच्चतर शिक्षा भी हासिल की। साठ के दशक में उन्होंने अमेरिका के मिनेसोटा विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। इसी दौरान वे हिमालय के स्वामी राम के संपर्क में आए। उनके शिष्य बने और ध्यान-योग की ओर प्रेरित हुए।

योग, ध्यान और अध्यात्म का प्रसार करने के अपने अभियान में स्वामी वेद भारती ने विश्व भर में 50 से अधिक केन्द्रों की स्थापना की, जिनमें से अधिकतर अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका में हैं। योग को विज्ञान से जोड़ने में उन्होंने महती भूमिका निभाई है। ऋषिकेश स्थित स्वामी राम साधक ग्राम में भी उन्होंने एक प्रयोगशाला स्थापित की है, जहां योग, ध्यान और अध्यात्म के विभिन्न प्रयोगों का अध्ययन किया जाता है। वे 19 भाषाओं के ज्ञाता थे और योग, ध्यान और अध्यात्म पर 18 पुस्तकें लिखीं। पतंजलि के योगसूत्र पर 1500 पृष्ठों की टीका उनकी महत्वपूर्ण कृति है।

स्वामी वेद भारती मानते थे कि योग और ध्यान स्व-शासन का विज्ञान है, उसकी कला है। हिमालय में हजारों वर्षों से ऋषि-मुनियों ने ध्यान-योग की जिस परंपरा को विकसित किया, स्वामी वेद भारती उसी परंपरा को आगे बढ़ाते गए। यह परंपरा सिर्फ कुछ आसनों और प्राणायामों तक सीमित नहीं, बल्कि उन पद्धतियों की शिक्षा देती है, जिसमें ध्यान का अभ्यास मनुष्य के समस्त व्यक्तित्व को सुंदरता प्रदान करता है, उसे उन्नत बनाता है। योग का अर्थ है - 'जुड़ना', स्वयं से जुड़ना, अपने भीतर की शक्ति से जुड़ना, अपने मन को जोड़ना, अपनी बुद्धि को जोड़ना। ऋग्वेद में योग को समाधि बताया गया है। हिमालय के ऋषियों की यह परंपरा, जिसे स्वामी वेद भारती ने आगे बढ़ाया, वह योग के नाम पर केवल शारीरिक-मानसिक लाभ के लिए शरीर हिलाने की प्रक्रिया नहीं है। योग तो स्वयं को जागृत करने का मार्ग है। भगवद्गीता में इसे 'अभ्यास' और 'वैराग्य' का मार्ग कहा गया है। योग की व्याख्या करते हुए स्वामी वेद भारती ने कहा कि योग समाधि है। योग 'स्व' की आध्यात्मिक स्वतंत्रता का जरिया है।

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