तारशितो का प्यारः भारतThe love of the tarshito: India
तारशितो का प्यारः भारत   कला के क्षेत्र में एक बात तो खास है कि जितने कलाकार होते हैं उतना ही विस्तृत उसका रूप होता है। तारशितो एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है आंतरिक ज्ञान की प्यास। इसे नाम के रुप में गुरू भगवान रजनीश (ओशो) ने अपने इटली के शि

तारशितो का प्यारः भारतThe love of the tarshito: India

नवोत्थान    14-Jul-2022
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तारशितो का प्यारः भारत

 

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कला के क्षेत्र में एक बात तो खास है कि जितने कलाकार होते हैं उतना ही विस्तृत उसका रूप होता है। तारशितो एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है आंतरिक ज्ञान की प्यास। इसे नाम के रुप में गुरू भगवान रजनीश (ओशो) ने अपने इटली के शिष्य निकोला स्ट्रीपोली को दिया। वास्तु कला में स्नातक प्राप्त करने वाले इस छात्र की रुचि कभी आध्यात्म में न थी। स्नातक की पढाई पुरी हुई। खुश होकर माता पिता ने उपहार के रूप मे अन्य देश का भ्रमण करने के लिए पैसे दिए।

तारशितो कहते हैं कि मै किसी भी देश की यात्रा करने के लिए जा सकता था लेकिन मेरे मित्र ने मुझे भारत जाने के लिए कहा। मेरी भारत यात्रा अभुतपूर्व अनुभवों से भऱपूर रही। वे बताते हैं कि वे 1979 में पहली बार भारत आए। उन्होंने बस व जहाज से अपनी यात्रा शुरु की। यात्रा के दौरान ग्रीस, टर्की, ईरान, अफगानिस्तान, का रोमांचक सफर तय करते हुए वे भारत पहुंचे।

भारत में वे अमृतसर, वाराणसी, रिशिकेश, वृन्दावन, और धर्मशाला घुमे। भारत दर्शन अन्य देशों के मुकाबले काफी अद्भुत व दिलचस्प रहा। वे अपनी तमाम देशों की यात्रा के मुकाबले भारत दर्शन को सबसे खास मानते हैं।

तारशितो शब्द सा व्यक्तित्व उनकी यात्रा के समय उनके अंदर पनपा। उन्हें भारतीय सभ्यता, कला, संस्कृति, पौराणिक गाथाओं, परंपरा, तकनीक, लोककला, लाोककथाओं ने काफी मोहित किया। उसके परिणाम स्वरूप उन्होंने खुद को एक पथिक के रुप में महसुस किया। इसे एक परियोजना का्र्य में तबदील करते हुए उन्होंने भारत को कला के रुप में दुनिया भऱ में पहुंचाया।

उनकी कलात्मक तीर्थ यात्रा की शुरुआत हुई 1986 में। वे कहते हैं कि उनका प्रयास न सिर्फ कला को जानना है बल्कि कला के जरिए कलाकारों, उनकी पौराणिक मान्याताओं, व जीवन की सच्चाई और उसे उत्सव के रुप में मनाने की परंपरा को जानने की खोज मे हैं। चुंकि वे ओशो से मिलने के बाद आध्यात्म से काफी प्रेरित हुए और उसी दिशा में काम करने की और अग्रसर हुए। कारणवश ही उनकी रचनाओं में ईश्वर और कला का मिलाजुला रूप देखने को मिलता है।

अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति करते हुए वे भारत को कलात्मक व आध्यात्म दोनों ही रुप में पूर्ण पाते हैं। उन्होंने भारत के तमाम क्षेत्रीय कलाकारों से मुलाकात की। भारतीय कला, संस्कृति, पौराणिक मान्याताओं को बढावा दिया।

द गोल्ड एंड क्ले नाम से पहली प्रदर्शनी राष्ट्रिय शिल्प संग्राहलय में आयोजित हुई। उनके पारंपरिक कला को समकालीन कला में सम्मिलित कर अद्भुत प्रस्तुति को देश भर में काफी सराहना मिली।

हाल ही में इसकी रोचक प्रस्तुति देखने को मिली दिल्ली के हौज खास मे्ं स्थित आर्ट कन्सल्ट में। यहां प्रदर्शित लुभावने चित्रों में क्षेत्रीय कलाकारी जीवंत नजर आई। लगभग 50 प्रदर्शनियों में भारत के चार राज्यों की कला, परंपरा, संस्कृति को चित्रित किया गया।

प्रदर्शनी में राज्स्थान, उड़ीसा, बंगाल, मध्यप्रदेश की क्षेत्रीय कला लघुचित्र, पटचित्र, गोंडचित्र, के कलाकारों संग मिलकर लोक परंपरा और लोक कला का नया रुप प्रदर्शित कर दर्शकों को मोहित किया।

चित्रों के साथ अपनी यात्रा को बयां करते हुए उन्होंने दिलचस्प मानचित्रों का भी निर्माण किया। जिनके नाम कुछ इस प्रकार थे, इंडिटैली, डेलीलंडन। ऐसे कलाकारों का भारत के प्रति प्रेम हमें न सिर्फ अपने विस्तृत संस्कृति पर गौरवान्वित होने के लिए प्रेरित करता है बल्कि उसके प्रति आदर और प्रेम भाव को बढाता है। प्रदर्शनी का उद्देश्य दर्शकों को तारशितो के कार्यों से परिचित कराने के साथ कला के नए रुपों से भी अवगत कराना था।

एक पल को तो भारत का ऐसा मोहक रुप देखकर किसी का भी अंतर्मन भारत दर्शन के लिए उत्सुकता से भर जाएगा। साथ ही प्रेम को गहरा करने में भी ये अहम भुमिका निभाता है।