पोस्टकार्ड का दौर
पोस्टकार्ड का दौरवो दिन आज भी याद है जब बचपन में कुछ पोस्टकार्ड पर मैंने अपने प्रियजनों को संदेश लिखे थे। लेकिन उसके पीछे की कला से अनजान मैं बस संदेश लिखती और खुश रहती थी। कुछ दिन पहले त्रिवेणी कला संगम में एक प्रदर्शनी देखने को मिली जिसका नाम था, ग्लोबट

पोस्टकार्ड का दौर

नवोत्थान    14-Jul-2022
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पोस्टकार्ड का दौर

पोस्टकार्ड का दौर

वो दिन आज भी याद है जब बचपन में कुछ पोस्टकार्ड पर मैंने अपने प्रियजनों को संदेश लिखे थे। लेकिन उसके पीछे की कला से अनजान मैं बस संदेश लिखती और खुश रहती थी। कुछ दिन पहले त्रिवेणी कला संगम में एक प्रदर्शनी देखने को मिली जिसका नाम था, ग्लोबट्रोटर्स- भारतीय उपमहाद्वीप के शुरुआती पोस्टकार्ड। ग्लोबट्रोटर्स का आश्य है विश्वयात्री। इसका उद्घाटन 17 अक्टुबर को हुआ। प्रदर्शनी में लगे 200 पोस्टकार्ड्स का संरक्षण करने वाले ओमार खान अमरीका में रहते हैं। उन्होंने इस पर पेपर ज्वेल्सः पोस्टकार्ड्स फ्रॉम द राज नाम से किताब भी लिखी है। यहां 1890- 1950 के समय के पोस्टकार्ड हैं। कला से अपरिचित लोग शायद ही इस पोस्टकार्ड की विश्वयात्रा के बारे में जानते होंगे। पोस्टकार्ड के इतिहास और उसके पीछे छिपी खुबसूरत कला से परिचय सही मायने में उसी दिन हुआ। उस दशक में हुई तमाम गतिविधियों के प्रमाण इन पोस्टकार्ड में निहित हैं। चाहें वो ब्रिटिश राज के केंद्र में रहने वाले राज्य दिल्ली, कोलकाता, बौम्बे और चैन्नई हों या फिर आजादी की आड़ में पनपने वाली भारत-पाकिस्तान की दर्दनाक कहानी। इस प्रदर्शनी के आयोजक अल्काजी फाउंडेशन के क्योरेटर राहब अलाना कहते हैं,ये पोस्टकार्ड प्रदर्शनी शैक्षिक दृष्टिकोण से लगाई गई है। इसमें कई प्रकार की गतिविधियों के प्रमाण हैं। फोटो, पेंटिंग, लिथोग्राफी, इत्यादि विभिन्न तकनीकों से बनाए गए पोस्टकार्ड्स का मिश्रण है। ये प्रदर्शनी सबसे पहले बौम्बे में आयोजित हुई और अब पहली बार दिल्ली में आयोजित की गई है

लिथोग्राफी के पोस्टकार्ड्स रवि वर्मा प्रेस के खंड में प्रस्तुत किये गए थे। रवि वर्मा केरल के नामचीन चित्रकार थे। वे पहले केसर ए हिंद मेडल से सम्मानित किए जा चुके हैं। 1896-1899 में हुई महामारी के कारण 1903 में ये प्रेस जर्मनी के हवाले हो गई। जिसमें 100 पेंटिंग्स, 14*20 इंच के लिथोग्राफ चित्र थे। उनमें से 22 यहां प्रदर्शित हैं। प्रदर्शनी में शकुंतला, मोहिनी, और हिंदु धर्म की देवियां- सरस्वती, लक्षमी इत्यादि के पोस्टकार्ड्स देखने को मिले। आजादी के संघर्ष को दर्शाते हुए उस दौर में बने पोस्टकार्ड पर जवाहरलाल नेहरु, महात्मा गांधी के साथ उस दौर के सोशलिस्ट एनी बैसंत, एस पी वाडिया, जी एस अरुंडले के पोर्ट्रेट भी यहां प्रदर्शित थे। गर्म दल के क्रांतिकारियों में लाला लाजपत राय, भगत सिंह, सुखदेव के भी पोस्टकार्ड दर्शकों को आजादी का आभास कराने में अहम योगदान दे रहे थे। 1931 में जब भगत सिंह और सुखदेव को फांसी की हुई तब जॉनी स्टोर्स ने उस समय की हलचल को कैद कर बहुत अनोखे पोस्टकार्ड बनाए थे। जॉनी को जानकीदास के नाम से भी जाना जाता था, वे कराची के फोटोग्राफर थे। प्रदर्शनी की खास बात उसमें गढी गई कहानी थी। जो पोस्टकार्ड के परिचय से शुरु हुई और आजादी की कहानी कह कर देश के चार राज्यों की कहानी से संबंधित था। इसमें बदलती कला की भी जानकारी थी, पहले शुरुआत हुई हाथ से बने चित्रों के पोस्टकार्ड की और एकाएक जब फोटोग्राफी का दौर आया, रंग आए प्रेस आई तो उनका स्वरुप ही बदल गया। भारत के साथ पाकिस्तान, बलोचिस्तान, सिंध, लाहौर, कराची के भी अद्भुत पोस्टकार्ड यहां मौजूद हैं। जिनमें लाहौर की सुनहरी मस्जिद, केंद्रिय संग्रहालय, चीफ कोर्ट और बादशाही मस्जिद शामिल थीं। उन शहरों में सबसे पहले प्रकाशक थे फ्रेड ब्रेमनेर। फ्रेड बलोचिस्तान से थे और अपनी कलात्मक फोटोग्राफी के लिए प्रसिद्ध थे। उनके कुछ पोस्टकार्ड जैसे ए बलोच डार्फ और ए ह्युमन नेस्ट इन बलोचिस्तान प्रदर्शनी का हिस्सा बने। फोटोग्राफी के प्रसिद्ध और प्रभावी होने के प्रमाण पेशावर की मेला राम एंड संस की सेना पर आधारित फोटोग्राफी से भी मिलते हैं। उनके प्रसिदध पोस्टकार्ड हैं द एंड ऑफ बच्चा सक्कू। बच्चा सक्कू यानी द सन ऑफ ए वॉटर कैरियर जिसने अफगानिस्तान के सम्राट आमिर अमनुल्लाह के प्रति खिलाफत संघर्ष किया था।

शहरों की झलक

शहरों की झलक में चमकते दिल्ली, बौम्बे, कोलकाता और चेन्नई के मश्हूर पोस्टकार्ड प्रदर्शनी में देखने को मिले जिससे शहर दर शहर की कहानी स्पष्ट हो रही थी। दिल्ली के बाजार में 1900- 1930 तक बस एक ही नाम था- एच ए मिर्जा एंड संस। उन्होंने दिल्ली की मुगल इमारतों, संकरी गलियों के साथ पुरानी दिल्ली की खुबसूरती को पोस्टकार्ड की शक्ल में संजोने का काम किया था। वहीं दूसरी ओर राफेल एंड संस ने दिल्ली की शान को दर्शाते हुए द मिस्टिरियस डेली नाम से पोस्टकार्ड बनाए। उस दौर का मश्हूर पोस्टकार्ड कश्मीरी गेट शहर का था। टक और मिर्जा ने पुरानी दिल्ली की खुबसूरती को उभारने के लिए बतौर प्रकाशक रंगों के साथ काफी प्रशंसनीय काम किया था। बौम्बे की बात आती है तो पोस्टकार्ड का किस्सा रवि वर्मा के नाम से ही शुरु होता है। उन्होंने 1899 में लिथोग्राफी से जनरल पोस्ट ऑफिस बौम्बे नाम से पोस्टकार्ड बनाए। इसका बड़ा कारण था बौम्बे का पोस्टकार्ड के लिए प्रसिद्ध होना। बौम्बे श्रेणी में 1860-1890 के अर्बन लैंडस्केप, समाज के पोस्टकार्ड यहां प्रदर्शित हैं। 1904 में शहर में ट्रैम आई। उसे दर्शाते हुए राफेल टक एंड संस ने पाइडाउनी स्ट्रीट इन बौम्बे नाम से इसके स्वागत में पोस्टकार्ड बनाए। बढते व्यापार में पोस्टकार्ड के ग्राहकों में बड़ी संख्या पारसी समुदाय की थी। पारसी समुदाय में महिलाएं पोस्टकार्ड का चहरा बनकर सामने आई। इस श्रेणी में गौहर जन अपनी मां मलका जन के साथ पोस्टकार्ड का दिलचस्प विषय बनी। समय के साथ जब गौहर जन अपने बेहतरीन गायन से मश्हूर हुईं तब 1904 में बतौर पहली भारतीय महिला गायिका के रुप में उन्हें ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग का हिस्सा बनने का मौका मिला। ब्रिटिश राज के दौरान कलकत्ता और चैन्नई कोलोनियल अर्बनिज्म में महत्वपूर्ण राज्य थे। कोलकाता के शुरुआती पोस्टकार्ड का मार्ग वियना से आया है। वियना में 1800 में ही छोटी प्रेसों की शुरुआत हो चुकी थी। 1897 में ऑस्ट्रियन फोटोग्राफर वर्नर रोस्लर ने कोलकाता को संबोधित कर ग्रिटिंग्स फ्रॉम.. नाम से पोस्टकार्ड बनाए। ये पोस्टकार्ड लिथोग्राफी कर बनाए गए थे। कोलकाता के साथ ही चैन्नई जिसे पहले मद्रास के नाम से जाना जाता था वहां भी पोस्टकार्ड का उत्थान उसी समय हुआ। मद्रास को दक्षिण भारत के फोटोग्राफी केंद्र कहा जाता था। 1890 तक प्रसिद्ध जर्मन फोटोग्राफर और प्रकाशक विली एंड क्लीन ने व्यु ऑफ मद्रास, मसुलाह बोट, फिशरमैन के पोस्टकार्ड बनाए। लेकिन 1900 में स्पेंसर एंड कम्पनी ने चेन्नई की पारंपरिक सभ्यता को दर्शाते हुए ए ग्रुप ऑफ स्कूल गर्ल्स, ए लिटिल ब्राहमिन ब्युटी, ए टोडी शॉप जैसे पोस्टकार्ड बनाकर उसे जीवित बनाए रखा। पोस्टकार्ड के पीछे छुपी कला और उसके बनाने की विधि, कारण इस प्रदर्शनी से समझ आते हैं। इसमें कहानी है, याद है, और कैद है इतिहास के कुछ अनछुए पन्ने।