लाहिड़ी बाबा
 लाहिड़ी बाबा  भारत के महान योगी संतों के विषय में लाहिड़ी बाबा की डायरी में अद्भुत जानकारी मिलती है। लाहिड़ी बाबा की डायरी में इस बात का उल्लेख है कि उन्होंने नानकपंथी साईं दास बाबा को क्रिया-योग की दीक्षा दी थी। यह भी ज्ञात है कि शिरडी के

लाहिड़ी बाबा

नवोत्थान    14-Jul-2022
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 लाहिड़ी बाबा


लाहिड़ी बाबा 
 
भारत के महान योगी संतों के विषय में लाहिड़ी बाबा की डायरी में अद्भुत जानकारी मिलती है। लाहिड़ी बाबा की डायरी में इस बात का उल्लेख है कि उन्होंने नानकपंथी साईं दास बाबा को क्रिया-योग की दीक्षा दी थी। यह भी ज्ञात है कि शिरडी के साईँ बाबा कभी भी अपने गुरु का नाम किसी को बताते नही थे किन्तु भेनकुश छद्मनाम से उनके नाम का उल्लेख करते। हालांकि शिरडी के साईं दास बाबा सचमुच ही कबीर पंथी थे- यह निश्चित रुप से नहीं कहा जा सकता। इसके साथ ही लाहिड़ी बाबा के जीवनकाल में, भारतवर्ष एकमात्र शिरडी के साईं बाबा का ही नाम मिलता है।

काशी के प्रसिद्ध होमियोपैथ चिकित्सक डॉ गोपालचन्द्र वन्द्दोपाध्याय योगिराज के शिष्य थे। वे अपने मित्र के साथ तैलंग स्वामी के दर्शन करने जाया करते थे। एक दिन उन्होंने योगिराज से तैलंग स्वामी से भेंट करने के लिए अनुरोध किया। उन दिनों तैलंग स्वामी की काशी धाम में अत्यन्त ख्याति थी। योगिराज की सहमति से वे तैलंग स्वामी के पास गए। डॉ के साथ धोती-कुर्ता पहने श्यामाचरण को आते देख स्वामी खड़े हुए और तेजी से आगे बढकर उन्हें अपने सीने से लगाया। वहां मौजूद सभी भक्तों ने योगिराज के बारे में जानने की इच्छा जताई। मौन स्वामी ने एक स्लेट पर लिखा- जिसको प्राप्त करने के लिए साधुओं-सन्यासियों को कौपीन तक को भी त्याग देना पड़ता है; उसे ही इस महात्मा ने गृहस्थाश्रम में रहकर प्राप्त किया है महात्मा तैलंग स्वामी की इस स्वीकृति से भारत के अन्यतम श्रेष्ठ गृही योगी श्यामाचरण की ख्याति लोक-जीवन में शीघ्र ही फैल गई।

देवघर के बालानन्द ब्रह्मचारी, काशी के भास्करानन्द सरस्वती, नानकपंथी साईं बाबा के साथ अनेक त्यागी, सन्यासी भी लाहिड़ी बाबा के सान्निध्य में रहकर धन्य हुए हैं। काशी-नरेश ईश्वरी नारायण सिंह कभी-कभी तैलंग स्वामी एवं भास्करानन्द सरस्वती के दर्शनार्थ जाया करते थे। एक दिन भास्करानन्द से इस गृही महायोगी की काफी प्रशंसा सुनी। भास्करानन्द ने प्रभावित होकर उनसे मिलने की इच्छा व्यक्त की। पहले तो योगिराज राजी नही हुए लेकिन विशेष अनुनय-विनय और अनुरोध के बाद आखिर जाने के लिए राजी हुए। काशी-नरेश स्वंय योगिराज को अपनी बग्घी या घोड़ागाड़ी में भास्करानन्द के पास ले गए। दो महामानवों का मिलन हुआ। भास्करानन्द ने गृही-योगी की साधना-पद्धति के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की और उनकी साधना-पद्धति को प्र्राप्त करने का सहर्ष अनुरोध भी किया था।