हुक्का की भारतीय परंपरा
   भारतीय इतिहास में शाही पसंद का बेहतरीन नमूना हुक्का दरअसल पुर्तगालियों की देन है। इसकी एतिहासिक पुष्टी करते हुए दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में ‘भारतीय कला और संस्कृति में हुक्का’ प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। हिंदी भाषा में हुक्का,

हुक्का की भारतीय परंपरा

नवोत्थान    14-Jul-2022
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भारतीय इतिहास में शाही पसंद का बेहतरीन नमूना हुक्का दरअसल पुर्तगालियों की देन है। इसकी एतिहासिक पुष्टी करते हुए दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में भारतीय कला और संस्कृति में हुक्का प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। हिंदी भाषा में हुक्का, पारसी भाषा में कलियां, और अंग्रेजी भाषा में हबल-बबल नाम से प्रचलित है। तंबाकु पीने का ये साधन भारत में पुर्तगालियों और असद बेग की मदद से आया। इसके सबसे पुराने अवशेष 9वीं और 10वीं सदी के नेशाबपुर, पुर्तगाल में मिले। संग्रहाध्यक्ष ज़ाहिद अली अंसारी और अनामिका पाठक ने 20 प्रकार के हुक्के प्रदर्शित किए, जिनका बेस सोना, चांदी, पीतल, पत्थर, चिकनी मिट्टी इत्यादि पदार्थों से बनाया गया था। 1604 में पुर्तगालियों ने तंबाकु का बीज भारत के बीजापुर में लगाया। तंबाकु की खेती बीजापुर में शुरु की गई। इस प्रदर्शनी का उद्देश्य हुक्का की विभिन्न प्रकार की बनावट, आकार-प्रकार, सजावट, पदार्थ से दर्शक को परिचित कराना था। जहां एक तरफ मुग़लों के बीच ग्लास पदार्थ हुक्का के लिए पसंद किया जाता था तो वहीं डेकन के सुल्तानों की पसंद थी बिदरी। बिदरी ज़िंक, तांबा और लीड की मिश्रित धातु है। सजावट के लिए सोना और चांदी का बहुत प्रयोग किया जाता था। इसका खुबसूरत उदाहरण देखने को मिला यहां प्रदर्शित चांदी से सजे पद्मावत में, इसका निर्माण 17वीं और 18वीं की बीच किया गया। इसके अलावा प्रदर्शनी में कई प्रकार के अलग-अलग आकार, सजावट के हुक्के देखने को मिले। जिनमें उनका शाही अंदाज बखूबी दिख रहा था। माना जाता है कि अंग्रजों के बीच हुक्का कल्चर को बनाने में भारत की मुख्य भुमिका है। भारत आने के बाद ही हुक्का से पहली बार उनका परिचय हुआ। ये हुक्का प्रदर्शनी आज के हुक्का कल्चर को चुनौती तो देती है। चुंकि आज हुक्का सिर्फ शौक है, शाही होने की पहचान है लेकिन लोगों का उसके प्रति कोई जुड़ाव है, उसमें कोई सजावट है और उसकी हालत आज और खराब हो गई है।

हुक्का की रुपरेखा-

हुक्का के चार भाग हैं। सबसे ऊपर होता है चिलम, जिसे बेस से जोड़ने का काम स्टेम करता है, पानी रखने के लिए एक बोतलनुमा बर्तन, हुक्का पीने के लिए एक पाइप जिसे मोहनल भी कहा जाता है। मुगल बादशाहों से लेकर राजपुताना शाही खानदानों में राजा और रानी दोनों की शाही पसन्द में से एक हुक्का हुआ करता था। कारणवश ही हुक्का चित्रकारी का भी अनूठा पात्र बनकर उभरा। पहली बार हुक्का पीते हुए (1719-1748) मुगल बादशाह मोहम्मद शाह का चित्र बनाया गया था।