अमृतानंदमयी देवी Amritanandmayi Devi
 अमृतानंदमयी देवी सुधामणि का जन्म 27 सितम्बर 1953 में हुआ था। सुगुणानन्दन और दमयन्ती के घर जन्म लेने वाला यही शिशु आगे चलकर अमृतानंदमयी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अम्मा की जीवनी को पढने से पता चलता है कि जब दम्यन्ती गर्भवती हुई तो उन्हें बहुत ही

अमृतानंदमयी देवी Amritanandmayi Devi

नवोत्थान    14-Jul-2022
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 अमृतानंदमयी देवी
अमृतानंदमयी देवी

सुधामणि का जन्म 27 सितम्बर 1953 में हुआ था। सुगुणानन्दन और दमयन्ती के घर जन्म लेने वाला यही शिशु आगे चलकर अमृतानंदमयी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अम्मा की जीवनी को पढने से पता चलता है कि जब दम्यन्ती गर्भवती हुई तो उन्हें बहुत ही चित्र-विचित्र स्वप्न-दृश्य दिखाई देते थे। कभी शिव-पार्वती तो कभी कृष्ण की लीलाएं। जिस दिन अम्मा का जन्म होने वाला था उस रात दमयन्ती को सपना आया कि उनकी कोख से कृष्ण ने जन्म लिया है और वे उन्हें स्तनपान करा रही हैं। वे स्वप्न से चकित रह गई और अगली सुबह अपने काम में वयस्त उन्हें लगा कि उनके प्रसव की घड़ी नजदीक है लेकिन उस पर ज्यादा गौर न करते हुए वे काम करती रही। लेकिन अचानक ही उन्हें जब इडमन्नैल जाने की प्रेरणा हुई अपने घर पहुंचकर सामान इक्ट्ठा करने लगी। उसी दौरान उनकी प्रसव की घड़ी नजदीक आ चुकी थी और एक नन्हें से शिशु ने जन्म लिया।

बचपन से ही माता पिता अम्मा के श्यामल रंग से परेशान थे। बचपन में उन्हें लगता था कि कोई आंतरिक रोग है लेकिन इसकी पुष्टी न होने से उनकी चिंता बढ गई। जैसै-जैसे वो बड़ी हो रही थी उसका श्यामल रंग काले रंग में बदलता जा रहा था। बच्ची के भीतर जब भी श्याम रे दिव्य दर्शन की अभिलाषा होती उसकी त्वचा रंग घनश्याम हो जाता। बड़े होने पर अम्मा अपने दिव्य भाव में प्रवेश करती तो उनकी त्वचा में घनश्याम रंग की झलक देखने को मिलती।

अम्मा ने बचपन से ही बड़ा कठोर और विषमताओं भरा जीवन व्यतीत किया था। कभी मा के तानेबाने से जूझना तो कभी रिश्तोदारों की बातें सुनना। अपने बालकाल से ही वे बहुत मेहनती थी, रोज तीन बजे तड़के उठ कर घर के कामकाज कर वो स्कूल जाती थी। उनके पिता चुंकि काम के लिए जल्दी जाते और रात को देर से ही आते थे, उनकी मा ने कभी सुधामणि को अपने पिता की नजरों मे दोषी करार देने का एक मौका नही छोड़ा था। सुधामणि ने जिस धीरज, सहनशीलता और त्याग का परिचय दिया वह अविश्वसनीय था। सब बातों को सहज ही स्वीकार करने की उसकी क्षमता और परमेश्वर का अनवरत नाम-स्मरण करते रहने की उसकी प्रवृत्ति ने मानो इस बात की पूर्व सूचना दे दी कि परमात्मज्ञानी महत् आत्माओें की भईरत की अखंड परंपरा में एख नूतन महान आत्मा का आगमन हो चुका है।

बालिका इतने वर्ष के विषमताओं में जीवन व्यतीत कर एक बात तो समझ गई कि घर के लोगों से उसके निकट संबंध बनाए रखने पर उसके जीवन के परम लक्ष्य में बहुत बड़ा अवरोध साबित होगा। आखिर वो एक दिन एसी परिस्थितियां बनाने में सफल हुई जो उसे इन बंधनों से मुक्त करने में मदद करेगा। एक दिन उसने जान-बूझकर अपने परिवार से झगड़ा किया और उस झगड़े के मक्सद घर छोड़ने में वे सफल हुईं। जाने से पहले बालिका ने कहा, एक दिन ऐसी परिस्थिति आएगी कि तुम लोगों को मेरे पास भीख मांगने आना पड़ेगा।

युवा सुधामणि का सम्पुर्ण अस्तित्व अब परब्रह्म में निरन्तर स्थित था। अब पहले के सामान घरेलु कामकाज करना मुश्किल हो गया था। लेकिन कई प्रयासों के बावजूद ये माना जाता था ईश्वर ने उनके लिए जीवन में कुछ और ही लिखा था।

भक्ति योग की दृष्टिकोण से देखा जाए तो अम्मा एक सर्वश्रेष्ठ भक्त के रुप में हैं। उनमें परम भक्ति की विभिन्न विधाओं की निर्बाध अभिव्यक्ति को देखा जा सकता है। जब ज्ञान-योग का अनुयायी अम्मा का निरीक्षण करता है तो उसे उनके वचन और कर्म में एक परिपूर्ण आत्मज्ञानी के दर्शन होते हैं। ये सारे मत, आंशिक रुप से सत्य हैं और वे प्रत्येक निरीक्षक की अपनी सीमित समझ और अनुभव से उत्पन्न हुए हैं।

अम्मा ने कई विद्दालय और गुरुकल खुलवाए जहां हर प्रकार की तकनीकी शिक्षा को सिखाया जाता है। छात्रवृत्ति कार्यक्रम और युवधर्म धारा जैसी योजनाएं बनाईं। उन्होंने आश्रम का निर्माण करवाया जिसमें लगभग एक हजार स्थायी निवासी हैं जिनमें 600 ब्रह्मचारी एवं ब्रह्मचारिणी हैं जिन्होंने अपना जीवन सदैव अम्मा के दिशा-निर्देश में साधना करते हुए मानवता की सेवा को समर्पित कर दिया है। आश्रम में आध्यात्मिक शास्त्र, संस्कृत, भारतीय संस्कृति व परंपरा, योगाभ्यास जैसे विषयों पर नियमित कक्षाएं होती हैं। भारत और विदेश में आश्रम-निवासी सक्रिय रुप से सेवा कार्यों में भाग लेते हैं।

2016 में अम्मा ने 18 से 22 जून तक अमेरिका में दो दिन तक देवी भवा में अपने शांति प्रिय कार्यक्रमों का आयोजन किया। इसमें ध्यान, बातचीत, योगासनों इत्यादि करवाया गया। अंतर्राष्ट्रिय योगा दिवस के उपलक्ष्य में अमृतापुरी और अमेरिका में इसका उल्लास देखा गया। अमृतापुरी में हजार से भी ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। उन्होंने 2015 योग शिक्षा को बढावा देते हुए कैम्प करवाए जिसमें देशभर के शिक्षकों ने हिस्सा लिया। अम्मा के विद्दालय, आश्रमों में रोजं योगा क्लास का आयोजन करवाया जाता है। इसमें देश भर से एक लाख स्कूल, कॉलेज, में पढने वाले बच्चों ने हिस्सा लिया है।

अम्मा के योगा के विषय में कहती हैं कि योगा के जरिए प्रकृति और ईश्वर के साथ जुड़ा जा सकता है। इसके अलावा ये स्वास्थ्य और मन की शांति के लिए बहुत जरुरी है।