ईशा योग के जनक जग्गी वासुदेव
नवोत्थान डेस्क
अनिश्चितता और असंभावना के इस दौर में जग्गी वासुदेव ने राह दिखाने का काम किया है। वे एक योगी और दिव्यदर्शी हैं। 'सद्गुरु' भी कहलाते हैं। 3 सितंबर, 1957 को वे कर्नाटक के मैसूर में एक डॉक्टर के घर पैदा हुए। बचपन से ही प्रकृति इन्हें अपनी तरफ आकर्षित करती रही। वे उसकी बारीकियों को जानने-समझने की कोशिश करते रहे हैं। ऐसा अक्सर होता था वे कुछ दिनों के लिए जंगल के भीतर चले जाते। वहीं पेड़ की ऊंची डाल पर बैठकर हवाओं का आनंद लेते। इसी क्रम में अनायास ही गहरे ध्यान में चले जाते। फिर जब घर लौटते तो उनकी झोली में कई सांप होते। इसका अर्थ यह है कि घने जंगल के रहस्य को जानने-समझने के क्रम में उन्होंने सापों को पकड़ने में महारथ हासिल कर ली थी।
तब वे महज 11 साल के थे कि योग का अभ्यास करना शुरू कर दिया था। उन्हें योग की शिक्षा श्री राघवेन्द्र राव से मिली। 25 के हुए तो उन्हें चमत्कृत रूप से आत्मानुभूति हुई, जिससे उनके जीवन की दिशा ही बदल गई। कहते हैं कि एक दोपहर जग्गी वासुदेव मैसूर स्थित चामुंडी पहाड़ियों पर चढ़ गए। वहां वे एक बड़े चट्टान पर बैठ गए। तब उनकी आंखे खुली थीं। अचानक, उन्हें शरीर से परे का अनुभव हुआ। उन्हें लगा कि वह अपने शरीर में नहीं हैं, बल्कि हर जगह फैल गए हैं- चट्टानों में, पेड़ों में, पृथ्वी में। अगले कुछ दिनों में उन्हें यह अनुभव कई बार हुआ। हर बार यह उन्हें परमानंद की स्थिति में छोड़ जाता। इस घटना ने उनकी जीवनशैली को पूरी तरह से बदल दिया।
फिर जग्गी वासुदेव ने इन अनुभवों को बांटने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने का फैसला किया। उन्होंने ‘ईशा फाउंडेशन’ की स्थापना की। साथ ही ईशा योग कार्यक्रमों की शुरुआत की। ईशा योग के केंद्र भारत समेत कई देशों में हैं। भारत में ईशा योग केंद्र वेलिंगिरि पर्वत की तराई में 150 एकड़ की भूमि पर स्थित है। घने वनों से घिरा। ईशा योग केंद्र नीलगिरि जीवमंडल का एक हिस्सा है, जहां भरपूर वन्य जीवन मौजूद है। आंतरिक विकास के लिए बनाया गया यह शक्तिशाली स्थान योग के चार मुख्य मार्ग-ज्ञान, कर्म, क्रिया और भक्ति को लोगों तक पहुंचाने के प्रति समर्पित है। इसके परिसर में ध्यानलिंग योग मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की गई है। 1999 में सद्गुरू द्वारा प्रतिष्ठित ध्यान लिंग अपनी तरह का पहला लिंग है, जिसकी प्रतिष्ठता पूरी हुई है। योग विज्ञान का सार ध्यानलिंग, ऊर्जा का एक शाश्वत और अनूठा आकार है। 13 फीट 9 इंच की ऊंचाई वाला यह ध्यानलिंग विश्व का सबसे बड़ा पारा-आधारित जीवित लिंग है। यह किसी खास संप्रदाय या मत से संबंध नहीं रखता, न ही यहां पर किसी विधि-विधान, प्रार्थना या पूजा की जरूरत होती है।
जो लोग ध्यान के अनुभव से वंचित रहे हैं, वे भी ध्यानलिंग मंदिर में सिर्फ कुछ मिनट तक मौन बैठकर ध्यान की गहरी अवस्था का अनुभव कर सकते हैं। इसके प्रवेश द्वार पर सर्व-धर्म स्तंभ है, जिसमें हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, जैन, बौध, सिख, ताओ, पारसी, यहूदी और शिन्तो धर्म के प्रतीक अंकित हैं। यह धार्मिक मतभेदों से ऊपर उठकर पूरी मानवता को आमंत्रित करता है। साद्गगुरु जग्गी वासुदेव दुनिया को संदेश देते हैं- आप ज्ञान योग के रास्ते अपने मन से तमाम चीजें कर सकते हैं, लेकिन अपनी ऊर्जा के साथ कुछ खास नहीं कर सकते। भक्ति मार्ग पर आप कुछ नहीं कर सकते। कर्म योग से आप दुनिया में बहुत कुछ कर सकते हैं, लेकिन अपने साथ कुछ नहीं कर सकते। जबकि क्रिया योगी ऊर्जा के संबंध में अपने साथ जो चाहे वह कर सकता है। वह दुनिया के साथ भी बहुत कुछ कर सकता है। वे कहते हैं कि क्रिया योग आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का एक शक्तिशाली लेकिन बहुत चुनौतीपूर्ण पद्धति है। क्रिया मार्ग पर आप सिर्फ आत्मज्ञान प्राप्त करने की कोशिश नहीं करते, बल्कि जीवन की प्रक्रिया को भी जानते हैं।
स्मरण रहे कि ईशा फाउंडेशन का दावा लोगों की शारीरिक, मानसिक और आंतरिक कुशलता के प्रति समर्पित होने का है। फाउंडेशन ने योग के विस्तार के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। पर्यावरण की रक्षा के लिए आम जन में के बीच अलख जगाने का काम किया है। योग उसके मूल में है।