गुजराती में इसका अर्थ है- हे माँ, आप हमारे गरबा में आओ, हम आपको गरबा नृत्य करते हुए गरबा में घुमते हुए देखना चाहते हैं।
गरबा नृत्य के नाम से जाना जाता है लेकिन इसका जन्म संस्कृत शब्द गर्भ और दीप से हुआ है। गरबा मिट्टी का घड़ा या कुम्भ होता है जिसमें छिद्र होता है। ये कुम्भ ब्रह्माण्ड का प्रतीक है जिसकी स्थापना नवरात्रि के प्रथम दिन, प्रत्येक गुजराती परिवार करता है। गरबा के अंदर जौ, हरा मूंग, अक्षत, गेंहू, और कुछ पैसे रखे जाते हैं। उसके शीर्ष पर एक दीपक सजाया जाता है। इसकी स्थापना कर पूरी सृष्टि में धन-धान्य, समृद्धि, सुख, शांति की प्रार्थना की जाती है। कुंवारी कन्याएं इस गरबे को लेकर आस-पड़ोस के घरों में ले जाकर गीत सुनाती हैं और उनका आर्शिवाद ग्रहण करती हैं। गरबे की सजावट संसार की सुंदरता का साक्ष्य होती है जिसे महिलाएं अपने हाथों से सजाती हैं।
घट के साथ ही गरबा गुजराती समुदाय का पारंपरिक नृत्य भी है। ये नृत्य नवरात्री के हर दिन बहुत ही उत्साह के साथ मां की प्रतिमा और दीप के सामने गोलाकर में घूमते हुए किया जाता है। गुजराती समुदाय की मान्यता के अनुसार दीप देवी आदिशक्ति की उर्जा का अंश है। उस उर्जा का आभास उन्हें नृत्य के दौरान होता है। हर्ष और उल्लास से भरे नौ दिन के पर्व में गर्भ दीप स्त्री की सृजनशक्ति का प्रतीक होते हैं।
गरबा को भक्तिरस का लयबद्ध माध्यम माना जाता है। जिसे सिर्फ अन्य गीतों और भजनों की तरह पढा नही जाता बल्कि मनाया जाता है। गुजरात के लोगों का मानना है कि यह नृत्य मां अंबा को बहुत प्रिय है। कारणवश उन्हें प्रसन्न करने के लिए गरबा का आयोजन किया जाता है। गरबा खेलते समय महिलाएं समूह बनाकर तीन तालियों का प्रयोग करती हैं। इसके पीछे भी एक महत्वपूर्ण कारण विद्यमान है। पहली ताली ब्रह्मा अर्थात इच्छा से संबंधित है। यह मनुष्य की भावनाओं और उसकी इच्छा का समर्थन करती है। दूसरी ताली के माध्यम से विष्णु रूपी कार्य तरंगें प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य को शक्ति प्रदान करती हैं। तीसरी ताली शिव रूपी ज्ञान तरंगों के माध्यम से मनुष्य की इच्छा पूर्ति कर उसे फल प्रदान करती है। ताली की आवाज से तेज निर्मित होता है और इस तेज की सहायता से शक्ति स्वरूप मां अंबा जागृत होती है। ताली बजाकर इसी तेज रूपी मां अंबा की आराधना की जाती है। आजादी से पहले गरबा नृत्य में भक्तिरस से भरपूर गीतों के साथ देश भक्ति से ओतप्रोत और साम्राज्यवाद विरोधी गीतों पर भी गरबा खेला जाता था। आज गरबा नृत्य पूरी तरह से अपनी परंपरा को बनाए हुए विश्व विख्यात है। गरबा भारत की अनेकता में एकता, उत्सवधर्मिता, व्रत, हवन, अनुष्ठान, भाईचारे, पारंपरिक वेशभूषा को प्रोत्साहित करता है।